6 साल की उम्र में भूख से मर गए मां-बाप, तब से कभी नहीं किया भरपेट भोजन, हैरान कर देगी 128 साल के 'पद्मश्री बाबा' की कहानी
हम सभी के जीवन में कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जो दिल को छू जाती हैं। ऐसी ही एक कहानी है “पद्मश्री बाबा” की, जिनकी उम्र आज 128 साल बताई जाती है। यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की उम्र की नहीं, बल्कि उनके जीवन में आए संघर्षों, कठिनाइयों और दृढ़ संकल्प की मिसाल है।
शुरुआत: भूख और बेबसी से भरी बचपन की कहानी
पद्मश्री बाबा का जीवन बेहद कठिन परिस्थितियों में शुरू हुआ। जब वे केवल 6 वर्ष के थे, तभी उन्होंने अपने माता-पिता को भूख के कारण खो दिया। यह किसी भी बच्चे के लिए असहनीय दुःख होता है, लेकिन उस समय की गरीबी और सामाजिक असमानता में यह एक आम त्रासदी बन चुकी थी।
उनके माता-पिता की भूख से हुई मौत ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। उस दिन से लेकर आज तक उन्होंने कभी भरपेट भोजन नहीं किया — यह बात सुनकर हमारी आत्मा कांप जाती है। सोचिए, एक इंसान जिसने कभी पेट भर खाना नहीं खाया, फिर भी आज 128 साल का होकर जीवित है और लोगों के लिए प्रेरणा बना हुआ है।
संघर्ष से सफलता की ओर
संगम पर आस्था का मेला लग गया है। कल्पवासी जुट गए हैं और संकल्प लेकर एक माह का जप तप शुरू कर दिया है। काशी के 128 वर्षीय पद्मश्री बाबा शिवानंद भी कल्पवास के लिए महाकुंभ पहुंच चुके हैं। महाकुंभ पहुंचे शिवानंद बाबा नई पीढ़ी को आशीर्वाद तो देंगे ही, लेकिन स्वयं मां गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती से संपूर्ण मानवता के कल्याण का आशीर्वाद मांगेंगे। प्रकृति प्रेम और संवेदनशीलता की जीवंत प्रतिमूर्ति बाबा शिवानंद योग के जरिए स्वास्थ्य की ओर बढ़ने का संदेश भी देंगे। योग उनकी दिनचर्या का नियमित हिस्सा है। बाबा शिवानंद का जन्म अविभाजित बंगाल के श्रीहट्टा जिले के ग्राम हरिपुर (थाना-बाहुबल) में गोस्वामी ब्राह्मण परिवार में आठ अगस्त 1896 को हुआ था। वर्तमान में यह स्थान बांग्लादेश में है।
आश्रम में रहकर कर रहे कल्पवास
शिवानंद बाबा सेक्टर 16 स्थित आश्रम में रहकर कल्पवास कर रहे हैं। उन्होंने मीडिया से बातचीत में बताया कि वे छह वर्ष की उम्र से ही अनुशासित दिनचर्या का पालन कर रहे हैं। ब्रह्ममुहूर्त में ही वह बिस्तर छोड़ देते हैं। स्नान-ध्यान के बाद नियमित एक घंटे तक योग करते हैं। भरपेट भोजन नहीं करते हैं शिवानंद बाबा सुबह नाश्ते में मुरमुरे का चूर्ण लेने वाले बाबा शिवानंद भरपेट भोजन नहीं करते। इसके पीछे एक कारण है। उनके पिता श्रीनाथ गोस्वामी और माता भगवती देवी ने उन्हें चार साल की उम्र में बेहतर भविष्य के लिए नवद्वीप निवासी बाबा ओंकारानंद गोस्वामी को समर्पित कर दिया था। इसके बाद उन्होंने काशी में एक गुरु के मार्गदर्शन में आध्यात्म की दीक्षा लेनी शुरू कर दी।
माता-पिता और बहन की भूख से मौत
बाबा शिवानंद जब छह साल के थे तभी उनके माता-पिता और बहन भूख से मर गए। बचपन से उन्होंने कभी भरपेट भोजन नहीं किया। इसलिए उन्होंने जीवन भर आधा भोजन करने का संकल्प लिया। दोपहर में वह बिना तेल-मसाले वाली सब्जी के साथ चावल और रोटी खाते हैं और शाम के भोजन में सिर्फ एक रोटी ग्रहण करते हैं। गजब की फिटनेस…दंग रह जाएंगे अविवाहित बाबा शिवानंद की फुर्ती ऐसी है कि दंग रह जाएंगे। वह शिविर के प्रवेश द्वार के ठीक बगल वाले कमरे से बिना किसी सहारे के बाहर निकलते हैं। बिना चश्मे के भी उन्हें साफ दिखाई देता है। वह हर मौसम में सिर्फ कुर्ता-धोती पहनते हैं। सुबह एक घंटा योग करने के बाद एक घंटे तक उसी कमरे में टहलते हैं। बाबा शिवानंद का स्थान वाराणसी के कबीरनगर (दुर्गाकुंड) में तीसरी मंजिल पर है। वह रोजाना तीन से चार बार सीढ़ियां चढ़ते-उतरते हैं। उन्होंने योग करते हुए 122 साल बिताए हैं। उनके शिविर में स्विट्जरलैंड, बांग्लादेश, गुवाहाटी, असम, त्रिपुरा, पुरी और बेंगलुरु से अनुयायी रह रहे हैं।
126 साल की उम्र में मिला पद्मश्री